“आशा की नदी”
“आशा की नदी”
इस सृष्टि में आशा की नदी अनवरत् बह रही है। यह लेने वाले पर है कि वह कितना ले। कोई लुटिया भर लेता है, कोई लोटा भर तो कोई गगरा भर। लेकिन कुछ अभागे नदी का बहाव देखते रह जाते हैं। उसमें आचमन करने का भी उसे सौभाग्य प्राप्त नहीं होता।