” आशा की एक किरण “
डॉ लक्ष्मण झा”परिमल ”
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स्तब्ध मौन मायूस भरी
नज़रों से निहार रही थी,
शब्द मनोमस्तिष्क में
उमड़ घुमड़ रहे थे,
पर होठ हिलते नहीं थे,
बातें तो बहुत उनसे कर ली,
आभास कुछ होने लगा,
कहीं कोई बात तो नहीं रह गयी ?
अधूरी बातें, अधूरी चाहत,
अधूरेपन की झनझनाहटों ने
निष्प्राण हमको कर दिया !
बहुत चाह थी वे आएँगे
जी भर के उनसे बातें करुँगी,
अपनी हर हसरतों को साकार करुँगी !
अच्छे दिन कुछ दिन ही रहे
अब जो बातें रहीं वो रह गयीं,
हम अधूरे रह गए !
अगली बरसातों में ही
अपनी बातें हमको कहेगी !
फिर स्तब्धता मौनता और
मासूमियत को सदा के लिए छोड़ देगी !!
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डॉ लक्ष्मण झा”परिमल ”
साउन्ड हेल्थ क्लिनिक
एस 0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका