आशाः एक चिराग….
आशा : एक चिराग
हर बार बना महल
सपनों का,
ढह गया।
खण्डहर में पर,
एक चिराग
जलता रह गया।
आया झंझावात
जमकर वज्रपात हुआ
कोमल, नाजुक जज्बातों पर
विकट तुषारापात हुआ।
ध्वस्त हो गयीं
सब दीवारें
ऐसा प्रबल
आघात हुआ।
हुए अनगिन प्रहार
पर हार
न मानी उसने।
फिर से उठने, सँवरने की
हठ मन में
ठानी उसने।
एक-एक कर
हुए तिरोहित
भाव सब जख्मी मन के
पिरोता रहा पर वह
मन ही मन
आशाओं के मन भर मनके।
जलता रहा अकेले
सेंकता रहा हाथ
अपने ही अरमानों की
धधकती चिता पर,
हर सुख जिसका
पलक झपकते
पल भर में
साथ अश्कों के
बह गया ।
– © डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद