आवाजें
चीखती हुई आवाजें है कहीं और
कहीं घुटती हुई आवाजें है
कहीं मौन है आवाजें
तो कहीं शोर है आवाजें
समाज की ही है और समाज के बीच ही है आवाजें
कभी खामोशी से सुनना चीखती हुई आवाज़ो के दर्द को
घुटती हुई आवाज़ो को
मौन हुई आवाज़ो को
इन आवाजों में ही कहीं पाओगे
खुद को
निर्भया की चीखती हुई आवाज
दहेज के नाम पर चार दिवारी में घुटती हुई आवाज
सब कुछ जानते हुए मौन रहने की अन्तर आत्मा की आवाज
और दुनिया के शौर में खोई हुई आवाज
कौन सी है
किसकी है
कैसी है
कहा की है
कब की है
कब से है ये आवाज़
कब से है ये आवाज़
सुशील मिश्रा ( क्षितिज राज )