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5 Nov 2016 · 1 min read

आल्ह छंद में एक रचना

आल्ह छंद पर आधारित एक रचना….
(मापनी 31 तथा 16,15 पर यति, अंत में गाल)

सागर जिसके पैर पखारे, खड़ा हिमालय जिसके भाल।
ऐसे भारतवर्ष में जन्में, देखो कितने माँ के लाल।1

पकिस्तान की परिपाटी है, पीछे पीठ करे वह वार,
ऐसा वार किया भारत ने, गये तमतमा उसके गाल।2

रहा कोंचता नश्तर दुश्मन, धावा किया जाय उस पार,
देख पराक्रम थल सेना का, बदल गयी तब उसकी चाल।3

सेना करे देश की रक्षा , नेता करते लूट खसोट,
पौरुष सेना ने दिखलाया, नेता खुद के’ बजाते गाल।4

खून पी रहे सब जनता का, देकर उनको लॉलीपॉप।
बना रहे जनता की मूरख, भेड़िये छिपे शेर की खाल।5

होड़ लगी है नेताओं में, कितना कौन सके है लूट।
जाति धर्म में देश बाँट कर, नेता हो रहे मालामाल।6

चतुर मीडिया भुना रहा है, भड़काये सबके जज़बात।
टी आर पी को बढ़ा रहा है, और कमाये इससे माल।7

जागरूक होना ही होगा, जाने जनता उनके भेद।
ऐसा सबक सिखाएं उनको, कभी न गलने पाये दाल।8

दूर करें मिल राग द्वेष सब, चलें तरक्की की सब राह।
साथ खड़ा हो जाये जन जन, उन्नत तभी देश का भाल।9

प्रवीण त्रिपाठी
05 नवम्बर 2016

Language: Hindi
1 Comment · 441 Views
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