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14 Jun 2023 · 1 min read

कुछ बहुएँ ससुराल में

कुछ बहुएं ससुराल में…
यदा-कदा
मायके की याद में
बहा लेती हैं आंखों से नीर
बचपन, सखी-सहेली, बाबुल को याद करके
हो जाती हैं भाव-विभोर
माँ-बाप के स्नेह का आँचल जब याद आता है
तो बस ऑंखें हो जाती हैं नम।
पहले के ज़माने में चिट्ठियों में,
या फिर मायके की दहलीज़ पे जाकर
दर्द को बाँट लिया जाता था।
और आजकल फ़ोन/कॉल/मैसेज पर दर्द को बाँट लिया जाता है।
मगर……..
वो बहुएं क्या करती होंगी?
जिनके माँ-बाप ही रहे ना दुनिया में?
और बाबुल उनका केवल नाम का है।
वो बहुएं…
बहाएं किसके लिए अपनी आँखों का नीर?
और कौन करेगा परवाह उनके नयन-मोतियों की?
इसलिए उन्होंने मौन रहना सीख लिया है।
कभी जब दिल में दर्द भर आता है बेहद
तो वो कमरे के किसी कोने में जाके
चुपचाप, थोड़ी देर सिसक के
बहा के नयन मोती
अपने चेहरे का श्रृंगार कर आती हैं।

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