आल्हा छंद
विधा,, आल्हा छंद
मापनी,,16-15 पर यति
प्रति पद 31मात्राऍ
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काम बुता में अब लग जावव
अब लूबोन खेत के धान ।
जुर मिल करपा बीड़ा लाबो
अनदाई के करबो मान।।
बैला गाड़ी दौंरी बेलन
अब देखे दिखे न जाय।
आय जमाना हार्वेस्टर के
अन कुंवारी घर न आय।
अब पुजा पाठ घलो नदागे
काठा पैली मिले न पाय।
रास बंधई काठा नपई
सब लोगन अब भुले जाय।
खार के खेती खारे खार
सीधा मंडी धान बेचाय।
वाह रे आदमी कलजुग के
पुरखौती नियम ल मेटाय।।
बबा जमाना ल सुरता करन
खाड़ी दस खाड़ी पुर जाय।
बारी बखरी घलो लगावय
जरूरत के फसल उपजाय।।
काला कइथे ग जिलो तिवरा
अब के लइका जान न पाय ।
कुलथी हिरवा मड़िया नदगे
कोदो अरसी खोज न पाय।।
गाय गरू अउ बैला भैंसा
पानी मोल बिकत हैं भाय।
गऊ चरागन भाठा टिकरा
दशो दिशा खोजें न पाय।।
मौलिक रचना
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
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