आलिंगन में सपने चुप..
आज सुधाकर छुअन तुम्हारी
फिर विस्मित करने आई
मधुरिम मोहक और प्रतीक्षित
निशा में रंग भरने आई
फिर मृगांक अद्भुत कलाओं से
मोहित मन करने आया
मलयज डोल रही प्रांगण में
सुरभित रंग भरने आया
अक्स तुम्हारा.. रूप तुम्हारा
चकाचौंध मौसम कर दे
धवल चाँदनी में प्रियवर संग
मिलन से अपने नभ भर दे
चाहूँ मैं खो जाऊं शीतल
निशिता के आँचल में छुप..
प्रणय अधर पर मौन हँसे हो
आलिंगन में सपने चुप..
स्वरचित
रश्मि संजय श्रीवास्तव
रश्मि लहर
लखनऊ