आरुष किरण माँ
आशा सारी झूठ हुई अब, चारो और हताशा है
सपने सारे टूट गए अब, चारों और निराशा है
राह में राही रूठ गए अब, अपना नहीं सुहाता है
तम के बादल भाते मुझको, आरुष नहीं लुभाता है
माँ तुम मेरे हृदय में आकर, जीवन दीप जला दो ना
अन्धकार में भटक रहा हूँ, मुझको राह दिखा दो ना
तपती धूप में झुलस गया तन, छायाँ तनिक दिखा दो ना
अपने आँचल की छायाँ का, कतरा एक ओढा दो ना
अपने लहू से सींचा मुझको, जीवन की फुलवारी में
अपनी सारी खुशियाँ पायी, मेरी एक किलकारी में
जीने का हर सार बताया, गा कर हर एक लौरी में
खुद भूखे रह मुझे खिलाया, भोजन तंग-ए-कटोरी में
तेरे दिए हुए कदमो पर, चल कर राह बनायी है
तेरे वचन हृदय में रख, भटकों को राह दिखाई है
बहुत हुआ अब टूट गया हूँ, जोश हृदय में भर दो ना
करुणा और वात्सल्य से भीगे, हाथ मर्म पर धर दो ना
कदम कभी जब गलत बढ़ाऊँ, एक तमाचा जड़ दो ना
अपने कुल का नाम कमाऊँ, मुझको ऐसा वर दो ना
जग में तेरा मान बढ़ाऊं, मुझको ऐसा कर दो ना
माँ मैं तेरा लाल कहाऊँ, मुझको ऐसा वर दो ना
सत्येन्द्र कुमार
खैरथल, जिला-अलवर, राजस्थान