आरजू
अब क्या कहें किसी से, तू ही बता ऐ दिल।
हमको तो राहे जिंदगी, तन्हा बना गई ॥
सोचा था दो घड़ी , हँस के गुजार लें।
चाहा जो मुस्कराना, यह फिर रुला गई॥
खुशियाँ हों सिर्फ हासिल, न थी आरजू हमारी।
बस एक खुशी की चाहत, हमको मिटा गई॥
हमको मिला क्या तुझसे, जमाने तू ही बता।
नन्हीं सी आरजू थी, जो यूं फना हुई ॥
तेरे सितम का शिकवा भी, करें किस जुबान से।
तकदीर ही जब अपनी, खुद से खफा हुई॥
रचनाकार : कंचन खन्ना
मुरादाबाद, (उ०प्र०, भारत)।
सर्वाधिकार, सुरक्षित (रचनाकार)।
दिनांक :- ३१.०१.२०१६ .