आरक्षण:- भीख नही अधिकार
ओ बाबू साहबों,
कभी आओ हमारी गलियों में,
देखो अव्यवस्था से ग्रसित हमारे कमरों को,
जहाँ मच्छर से ज्यादा नेता खून चूसते हैं,
लेकर हमारे वोट,
हमीं को गाली की तरह यूज करते हैं।
जब आलिशान कमरों में तुम अपने बच्चों को,
डॉक्टर कलेक्टर बनाने की योजना बनाते हो,
हम थकान के मारे कल की भोजन पर भी
योजना नही बना पाते हैं,
अरे तुम्हे आरक्षण लगती होगी भीख,
हम इसे अपना अधिकार समझते हैं।
क्या कहते हो कौशलता दिखाओ?
जहाँ से तुम नाक पर रूमाल लेकर गुजरते हो,
हम वहां पर बिना किसी सुविधा के सफाई करते हैं,
बिना सोचे की अगली डुबकी के बाद
जिन्दा रहे ना रहें।,
तुम्हारे किए कराए को साफ करते हैं,
तो आओ कभी साथ में कौशलता आजमाते हैं,
तुम पुरखों की जायदाद छोड़ के आओ,
हम भी बाप की लाचारी लेकर आते हैं,
फिर होगा घमासान हमारे तुम्हारे बीच
फिर देखते हैं कौन कौशल और कौन बुलबुले समान
निकलते हैं,
अरे तुम समझते होंगे आरक्षण को भीख,
हम इसे अपना सम्मान समझते हैं अपना अधिकार समझते हैं।
तुम्हे बड़ा और हमें छोटा किसने बनाया?
तुम्हारे नाम के आगे जी,
और मेरे नाम के पहले अरे किसने लगाया,
किसने इतने सालों तक तुम्हे धन, शिक्षा का
एकाधिकार दिया,
और किसने हमारे गुरुर को सदियों तक तार-तार किया,
अब अपना हक मांगने पर हमें भिखारी कहते हो,
हमे प्रताड़ित करने को अपनी सरदारी कहते हो,
हम अपने हकोहुकुक के लिए जान मुठ्ठी में भर निकलते हैं,
अरे तुम्हे लगती होगी आरक्षण भीख,
हम इसे अपना अधिकार समझते हैं।।।