आभार आपका बाबा साहब.
दिखते तो सब है,
हाज़िर है कोई कोई,
देखता है कोई बिरला,
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लिखा तो है,
पढ़ता कोई कोई है,
कहते तो अनपढ़ भी हैं,
साक्षर को निरक्षर कर देते है,
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जोर विषयगत है,
इसलिए अनपढ़ आगे निकलते है,
हिसाब दुकान का अब भी बूढ़े करते है,
जवान कैल्कुलेटर में भी उनसे पिछड़े हैं,
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समय क्या हुआ है,
जवान घड़ी देखते है,
अनपढ़ जैविक घड़ी देख मौसम तक को पढ़ देते हैं !!
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जय भीम,
जय संविधान,
जो आपका संविधान प्रारूप अनपढ़ को भी संसद में आलोकित करता है,
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प्रारूप है निराले,
सूत्र हैं बिरले इसके,
पढ़े लिखे कहाँ है समझते,
हल करनी हो जब समस्या,
सूत्र कहां है रख पाते,
सीधे संशोधन ही हैं करते,
ये खूबी भी है संविधान की,
कहते हुए हैं …….मुकुरते,
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डॉ0महेंद्र.