आपदा
चारों तरफ है फैली तबाही,कहीं तूफान तो कहीं कोरोना
हाय ये कैसी आपदा है आई ।
यहां कोई किसी का नहीं,
सबको ही है अपनी धुन समाई।
किसी का दीप बुझा तो, किसी का आशियां उजड़ा,
हाय इस तूफान ने सबका कुछ ना कुछ लुटा है,
दिया ना किसी को कुछ भी।
यह बहते हुए आंसुओं के सैलाब आवाज देते हैं हमें,
कि अपनी दर्द भरी दास्तांने सुनाते हैं हमेंं।
इस कोरोना ने भी क्या कहर बरसाया ,
किसी की मां तो किसी के बेटे को चुराया।
जो आज आगे बढ़कर हमने इनके आंसुओं को न पोछा,
तो इस जीवन का कोई अर्थ नहीं, जो हमने इनके दर्द को न समझा।
तुम इंसान हो इंसान के काम आकर तो देखो ,अपनी हैवानियत को तज कर इंसानियत अपना कर तो देखो।
एक बार अपनी अमीरी का ताज हटाकर,
गरीबी की भट्टी में झांक कर तो देखो।