आधुनिकता का नारा
आज शहर शहर में चल रहा है
आधुनिकता का नारा,
आधुनिकता क्या है नहीं जानते ।
घसीट रहे हैं घिसे पिटे रीति रिवाज़ों को,
चले आ रहे हैं,बरसों से अन्धविश्वासों को,
ऊपर से फैशन का ढोंग रचा,
बनते हैं आधुनिकतावादी,
लेकिन अन्दर से क्या हैं वे,खुद भी नहीं जानते ।
अपना रहे पश्चिमी व्यवहार,
और कहते हैं इसे आधुनिकता,
बदल रहे हैं देश की सभ्यता,
क्या कर रहें हैं, नही जानते।
खुद को आज़ाद कहते हैं,
मग़र गुलामी की बू आती है,
आज़ाद हैं भी तो क्या हुआ,
खुद पर आधुनिकता का पोज़ चढ़ा,
नकल करते हैं गोरों की,
गुलामी आज़ादी का अन्तर नहीं जानते।
अंग्रेज़ी बोल कर, राष्ट्रीय भाषा को भुला कर,
लोग कहते है बदल रहा है ज़माना,
मगर नहीं जानते कि
ये बदला ज़माना है या पिछड़ा ज़माना,
दौड़ते हैं भौतिकता के पीछे,
नश्वर अनश्वर का अन्तर ही नहीं जानते ।
ऊपर से हैं आधुनिकतावादी,
अन्दर से हैं दक़ियानूसी,
आधुनिक दक़ियानूस का अन्तर भी नहीं जानते ।
आधुनिकता होती है,
ज्ञान में , विज्ञान में ,
समाज के कल्याण में ,
नवयुग के निर्माण में ,
निर्माण विध्वंस का अन्तर भी नहीं जानते।
आज शहर शहर में चल रहा है,
आधुनिकता का नारा,
आधुनिकता क्या है, नहीं जानते।