आदमी–4_ आदमी को कोई नहीं‚ छला है आदमी के जीवन ने।
आदमी–4
आदमी को कोई नहीं‚ छला है आदमी के जीवन ने।
पर‚ आदमी देता रहा है इल्जाम हरदूजे आदमी को।
दगा खुद को दिये जायेगा और सजा उस खुदा को।
रेवड़ की भाँति बाँटेगा इन्तकाम हरएक आदमी को।
इश्क खुद से आदमी आशातीत ही करेगा किया।
व पैदा करेगा नफरतों का श्राप हरेक आदमी को।
जीने को जोरू‚जर‚जमीन की बातों से परहेज नहीं।
और युद्ध की ललकार का इल्जाम हरेक आदमी को।
जीवन जीने के अक्ष पर जीवन कहीं रखेगा नहीं।
भौतिक स्वरूप जीवन का बाँटेगा हरेक आदमी को।
हर जीत के सेहरा को अपना सिर करेगा हाजिर।
हर हार का इल्जाम बाँटेगा दूजे हरेक आदमी को।
वक्त के कोख में डाला करेगा दुःख के बड़े बीज।
सुख का दिलासा हवा में छोड़ेगा हरेक आदमी को।
अमानवीय सोचों के सैलाब से भरेगा अपना दिमाग।
मानवीय सपनों से उल्लू करेगा हरएक आदमी को।
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