आदमी
आदमी है आदमी की ज़ात क्या!
कोई बदलेगा तेरे हालात क्या!!
आसमाँ से कौंधती हैं बिजलियाँ,
हम सभी हालात की कठपुतलियाँ,
नाचते रहते हैं दिन क्या,रात क्या!
जो मसीहा बन के राहों में मिला,
शख़्स वो डूबा गुनाहों में मिला,
और हैं बाक़ी अभी सदमात क्या!
रोज़ अंगारों पे चलता आदमी,
आग में अपनी पिघलता आदमी,
ज़िन्दगी है दर्द की सौग़ात क्या!
हौसले ढूँढ़े बहुत तदबीर में,
वो मिलेगा जो लिखा तकदीर में,
वक़्त के आगे तेरी औक़ात क्या!
ढेर लाशों के लगे हैं अनगिनत,
आदमी किसने ठगे हैं अनगिनत,
मर चुके हैं अब सभी जज़्बात क्या!
आदमी है आदमी की ज़ात क्या !!