Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
23 Jan 2024 · 1 min read

आदमी

कमरे में कैद होकर
तड़प रहा है आदमी।
आंगन में झलकती धूप
आमंत्रित करती है उसे।
समेट लो आकर अब
अपने आंचल में मुझे।
कमरे की खिड़की से
तक रहा है आदमी।
नभ में कुलांचे भारते
मृग-शावक से बादल।
सम्मोहित कर कहते
तोड़ दे बंधन पागल।
मन-द्वार लगा ताला
बिलख रहा है आदमी।
वृक्षों की फुनगी पर
पखेरू कलरव करते।
अपनी मृदु वाणी से
रस जीवन में भरते।
दृढ़ता से होठ भींचे
मिट रहा है आदमी।
संकरी औ’ तंग दुनियाॅं में
फंसकर क्यूं रोता है।
सांकल से जिंदगी बांधे
व्यर्थ ही बोझा ढोता है।
गीली लकड़ी-सा रह-रह
सुलग रहा है आदमी।

—प्रतिभा आर्य
चेतन एनक्लेव,
अलवर(राजस्थान)

Language: Hindi
2 Likes · 405 Views
Books from PRATIBHA ARYA (प्रतिभा आर्य )
View all

You may also like these posts

तुम प्यार मोहब्बत समझती नहीं हो,
तुम प्यार मोहब्बत समझती नहीं हो,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
हां अब भी वह मेरा इंतजार करती होगी।
हां अब भी वह मेरा इंतजार करती होगी।
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
वीर सैनिक
वीर सैनिक
Kanchan Advaita
आज की नारी
आज की नारी
Dr.sima
*मनः संवाद----*
*मनः संवाद----*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
गुरूर चाँद का
गुरूर चाँद का
Satish Srijan
हो हमारी या तुम्हारी चल रही है जिंदगी।
हो हमारी या तुम्हारी चल रही है जिंदगी।
सत्य कुमार प्रेमी
श्रंगार
श्रंगार
Vipin Jain
किसी को उदास देखकर
किसी को उदास देखकर
Shekhar Chandra Mitra
बाँसुरी
बाँसुरी
Indu Nandal
😘अमर जवानों की शान में😘
😘अमर जवानों की शान में😘
*प्रणय*
अच्छे दिनों की आस में,
अच्छे दिनों की आस में,
Befikr Lafz
*अज्ञानी की कलम*
*अज्ञानी की कलम*
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
हमसफर ❤️
हमसफर ❤️
Rituraj shivem verma
4481.*पूर्णिका*
4481.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
कुंडलिया छंद
कुंडलिया छंद
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
अस्त-व्यस्त सी सलवटें, बिखरे-बिखरे बाल।
अस्त-व्यस्त सी सलवटें, बिखरे-बिखरे बाल।
sushil sarna
** बहुत दूर **
** बहुत दूर **
surenderpal vaidya
तेरी यादों के आईने को
तेरी यादों के आईने को
Atul "Krishn"
संज्ञा गीत
संज्ञा गीत
Jyoti Pathak
"दाग़"
ओसमणी साहू 'ओश'
जिंदगी से कुछ यू निराश हो जाते हैं
जिंदगी से कुछ यू निराश हो जाते हैं
Ranjeet kumar patre
लौट कर वक़्त
लौट कर वक़्त
Dr fauzia Naseem shad
आज हम ऐसे मोड़ पे खड़े हैं...
आज हम ऐसे मोड़ पे खड़े हैं...
Ajit Kumar "Karn"
देश के वासी हैं
देश के वासी हैं
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
कर्ण कुंती संवाद
कर्ण कुंती संवाद
Er.Navaneet R Shandily
बाद मुद्दत के हम मिल रहे हैं
बाद मुद्दत के हम मिल रहे हैं
Dr Archana Gupta
*सुवासित हैं दिशाऍं सब, सुखद आभास आया है(मुक्तक)*
*सुवासित हैं दिशाऍं सब, सुखद आभास आया है(मुक्तक)*
Ravi Prakash
ग़ज़ल-जितने पाए दर्द नुकीले
ग़ज़ल-जितने पाए दर्द नुकीले
Shyam Vashishtha 'शाहिद'
दूर देदो पास मत दो
दूर देदो पास मत दो
Ajad Mandori
Loading...