आदमी
क्यों फँसा कर के झुकाया जा रहा है आदमी
दर्द दे कर क्यों सताया जा रहा है आदमी
ध्यान उसकी हर खुशी रखते न जो कोई तभी
तेज नश्तर सा चुभाया जा रहा है आदमी
जख्म सारे ही सहन करता रहा है अब तलक
क्यों ठिकाने सा लगाया जा रहा है आदमी
चाँद तक की नाप दूरी को जमीं से वो अभी
आसमां अब फिर चढाया जा रहा है आदमी
दुख सभी के फिर मिटा कर औ छिपा आँसू सदा
पीर अपनी को छिपाया जा रहा है आदमी
डॉ मधु त्रिवेदी