आदत
****** आदत ******
*** 1222 1222 ***
हमें तेरी हुई आदत,
सुधरती भी नहीं आदत।
सहा हमने तुझे हर दम,
बिगड़ती ही गई आदत।
दुखाती दिल बहुत मेरा,
बुरी लगती वही आदत।
मिले हो तुम हुए पागल,
महंगी थी पड़ी आदत।
नहीं देखी कहीं ऐसी,
कहाँ से है मिली आदत।
कहूँ कैसे मरज दिल की,
विचारों से घिरी आदत।
न मनसीरत भुला पाया,
बहुत प्यारी लगी आदत।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)