आदत में ही खामी है,
आदत में ही खामी है,
ओहदों को सलामी है।
हँसी में ही छुपी कहीं,
जख्मों की निशानी है।
ये कैसा दौर गुलशन का,
फूलों की नीलामी है।
हुनर उसमें कम नहीं,
पर नसीब में गुमनामी है।
– डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
आदत में ही खामी है,
ओहदों को सलामी है।
हँसी में ही छुपी कहीं,
जख्मों की निशानी है।
ये कैसा दौर गुलशन का,
फूलों की नीलामी है।
हुनर उसमें कम नहीं,
पर नसीब में गुमनामी है।
– डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति