*आत्म-मंथन*
आत्म-मंथन
भावुकता की चादर ओढ़,
मूक नहीं होना होगा।
अंधकार लिप्त आवरण फेंक,
निरंतर अग्रसर होना होगा।
संकल्प अटल करना होगा,
स्वर्णिम पथ पर बढ़ना होगा।
ऐसे पथ भी आएंगे,
जब कदम तेरे डगमगाएंगे।
मन में कौतूहल होगा,
हृदय भी विचलित होगा।
परंतु तुझे ऐ मेरे प्रिय-
वर्चस्व को बढ़ाकर,
अग्रिम पथ पर बढ़ाना होगा,
निरंतर प्रयत्न करना होगा।
यह तू मत सोच प्रिये,
इस समाज के होठों पर,
बातें क्या उजागर होंगी?
क्या लोगों के हृदयों में,
पहचान तेरी बस शून्य होगी?
अब तुझे यह निर्णय करना होगा,
अग्रिम पथ पर बढ़ाना होगा।
शून्य मात्र एक शून्य नहीं।
शून्यों से मिलकर अनगिनत बने।।
अतः तुझे ए मेरे प्रिय,
अगणित शून्य बनना होगा।
ऊपर बैठे उस ईश्वर को,
मूक रूदन सुनना होगा।
ऐसे ही वह हस्तियां नहीं।
जो आकाशों को छूती हैं,
जिनकी प्रतिभा से अब तक,
कई प्राण अछूते हैं।
ऐ प्रिय तुझे भी वैसे ही,
आत्म मंथन करना होगा।
आगे बढ़ते रहना होगा।
निरंतर प्रयत्न करना होगा।
ऐसे ही कुछ पुष्प नहीं जो,
नित ईश्वर के चरणों में,
अर्पित हो जाते हैं।
कठिन परिश्रम के पश्चात प्रिये,
वो श्रेष्ठ पद पा जाते हैं।
इसी प्रकार हे मेरे प्रिय,
परिश्रम से इस जीवन को,
अप्रतिम सरस करना होगा।
निरंतर प्रयत्न करना होगा।
स्वर्णिम पथ पर बढ़ाना होगा।।
डॉ प्रिया
अयोध्या।