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18 Feb 2024 · 1 min read

आत्म बोध

कीर्ति और वैभव के उच्च आयामों को स्पर्श करने वाला सम्भ्रांत व्यक्ति
जब परमात्मा के जीवंत प्रतिमा के सम्मुख खड़ा होता है
तो आत्मबोध होने लगता है
खुद को खुद उसे
अपने अस्तित्व का
सामाजिक प्रतिष्ठा
फीकी पड़ जाती है उसकी
अलौकिक शक्ति के सत्कर्म और आदर्शों की मधुर स्मृति मात्र से
व्यक्ति की गरिमा महिमा
शून्य और नगण्य हो जाती है
देवमूर्ति के समक्ष
आत्मबोध की स्थिति में
समस्त संचित अहंकार
खंडित हो जाते हैं उसके
व्यक्तित्व कृतित्व मनुष्यत्व के

@ ओम प्रकाश मीना

Language: Hindi
133 Views
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