आत्म बोध
कीर्ति और वैभव के उच्च आयामों को स्पर्श करने वाला सम्भ्रांत व्यक्ति
जब परमात्मा के जीवंत प्रतिमा के सम्मुख खड़ा होता है
तो आत्मबोध होने लगता है
खुद को खुद उसे
अपने अस्तित्व का
सामाजिक प्रतिष्ठा
फीकी पड़ जाती है उसकी
अलौकिक शक्ति के सत्कर्म और आदर्शों की मधुर स्मृति मात्र से
व्यक्ति की गरिमा महिमा
शून्य और नगण्य हो जाती है
देवमूर्ति के समक्ष
आत्मबोध की स्थिति में
समस्त संचित अहंकार
खंडित हो जाते हैं उसके
व्यक्तित्व कृतित्व मनुष्यत्व के
@ ओम प्रकाश मीना