आत्मा की अभिलाषा
पुलिस आई। पंचनामा हुआ। किसी रिश्तेदार के नहीं मिलने के कारण पुलिस ने सलोनी के अन्तिम क्रियाकर्म की इजाजत मुक्तिवाहिनी टीम को दे दी। मृत देह श्मशान ले जाई गई।
सलोनी की आत्मा यह सब देख रही थी। वह सोच रही थी पति की बेवफाई कर बेच दिए जाने के कारण कितने लोगों ने अपवित्र किया सलोनी के उस शरीर को, जिसका कोई हिसाब नहीं। कितनी बुरी तरह उसे नोचा गया,,, उफ्फ?
मृत देह को चिता में रखकर अग्नि दे दी गई। वह धू-धू कर जलने लगी। आत्मा शरीर को यूँ जलते हुए देख रही थी। आत्मा को भी लगा कि अब बहुत हो गया यह जन्म-जन्मान्तर का चक्र, यहीं रुक जाए तो ठीक। अब नहीं करनी मुझे काया प्रवेश।
यह सोचकर सलोनी की आत्मा ने जलती हुई चिता में छलांग लगा दी, मगर यह क्या? वह तुरन्त बाहर फेंक दी गई। उसने पुनः दुगुनी ताकत से छलांग लगाई, परन्तु उसी गति से फिर बाहर फेंक दी गई। वह जितनी बार जिस गति से चिता पर छलांग लगाई, उतनी ही बार उसी गति से वह बाहर फेंक दी गई।
अन्ततः शरीर जलकर भस्म हो गया। आत्मा ने सोचा अब कहाँ जाऊँ? तब उसने ईश्वर से प्रार्थना की- हे ईश्वर ! नारी जन्म बहुत कष्टप्रद है। फिलहाल मुझे पुनर्जन्म नहीं चाहिए। थोड़े दिन तो मुझे सलोनी की मृत्यु का सुख भोग लेने दीजिए, बस यही मेरी अभिलाषा है।
(मेरी प्रकाशित कृति : दहलीज़ (दलहा, भाग-7)
लघुकथा-संग्रह से..)
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
हरफनमौला साहित्य लेखक।