आत्महत्या
बेश कीमती जिंदगी की अमूल्य साँसें ,
यूँ मत उखाड़ ।
कहते हैं पापों में पाप
आत्महत्या यानि महापाप
मत बन इसका भागीदार
सत् (आत्मा ) और साहस ( शरीर )
मत खो, जीवन मुकाम ।
अपने लिए नहीं तो अपनों के लिए जीना है।
जीने की ललक ,हरहाल में रख ।
गुजर जाएगा ये संघर्ष पल।
यहाँ कौन जिंदगी अखण्ड सौगात है ।
मरना है एक – दिन सबको हरहाल ।
यहाँ तो जीने में जहर (द्वंद ) है, साँसों का पहर (अमृत ) हैं।
फिर ये आत्महत्या क्यों
यूँ ही जिंदगी मिटा देना।
भूला देंगे तुझे सब ,
पर जिसके थे तुम ।
तेरी आत्महत्या उसे हर पल खलेगा।
शूल सा चूमेगा ।
देख अपनों को मुश्किलें बता
यूँ ही जिंदगी मत उजाड़ ।
देख तू पूर्वजों को,
नहीं तो देख उन अवतारों (राम, कृष्ण ) को
क्या उनका जीवन सरल था।
अपने कर्मों , संघर्ष में अडिग रहे ।
तभी तो पाये सार ।
बेशक बेशकीमती हैं जिंदगी ,
यूँ मत अपने को मार ।
आत्महत्या नासूर हैं ।
जीने वालों को देता है , आघात
_ डॉ . सीमा कुमारी, बिहार (भागलपुर ) दिनांक- 15-8-020, स्वरचित कविता , जिसे आज प्रकाशित कर रही हूँ ।