आत्मनिर्भर (संक्षिप्त कहानी)
जिंदगी की विषम परिस्थितियों में मेरे सामने ऐसा दौर आया कि स्वयं के बेहतर स्वास्थ्य, बच्चों की उच्च-स्तरीय शिक्षा और परिवार की खुशहाली के लिए नौकरी छोड़ी, पल भर में कमाई का जरिया मुझसे छूट गया । इस मेरी कमाई से मिले आत्मनिर्भरता के सुकून को भला मैं कैसे भूल सकती हूं ? जिसकी सहायता से मेरे पति ने प्यारा आशियाना बनाया, बच्चों को अच्छे विश्वविद्यालय में शिक्षा दिलवाई, ताकि वे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन सकें, वे कहते हैं, यही तो अपनी कमाई असली पहचान है ।
लेकिन मेरा अतीत अब परे रहकर पुनः साहित्य पीड़िया परिवार के साथ मैं शनैःशनैः नयी पहचान बनाते हुए आत्मनिर्भर बन रही हूं ।