आज यूँ ही कुछ सादगी लिख रही हूँ,
आज यूँ ही कुछ सादगी लिख रही हूँ,
अपने दिल के अल्फाज़ लिख रहीं हूँ…
सादगी बहुत हैं, अल्फाज़ बहुत हैं…
ख्वाब बहुत हैं, ज़ज्बात बहुत हैं…
धुन तो नहीं, पर राग बहुत हैं..
कुछ टूटे हुए, कुछ छुटे हुए …
कुछ बिखरे हुए, कुछ रूठे हुए…
कुछ अपने से, कुछ खुद से
कुछ बेगाने से, कुछ दोस्तों से
कुछ नए से, कुछ पुराने से…
कुछ भूले हुए, कुछ अनजाने से…
छूटे हुए कुछ अंदाज लिख रही हूँ,
अपने दिल के अल्फाज़ लिख रही हूँ ।
ये इतना आसान नहीं ,
दिल की बातें कोई सामान नहीं,
लिखने के लिए ये काग़ज़ है,
पर इनमे कहां इतनी ताकत है…
जो संभाल पाए मेरे ये दोस्ती को, परिवार को, रिश्तेदार को,खुद को,
इन काग़ज़ों में वो औकात नहीं,
खैर जाने दो,दिल में कोई खास बात नहीं…
जो हो गए नजरअंदाज, लिख रहीं हूँ
अपने दिल के अल्फाज़ लिख रही हूँ।
अगर संभाल ना पायेंगे कभी अपने अहसासों को,
तो काग़ज़! मिलने आयेंगे तुमसे हम, बताएंगे अपने जज़्बातों को….
भीड़ में कभी अगर तन्हा हुए,,,
तो बुलाएंगे तुम्हें,,भीगी भीगी रातों को ..
अभी के लिए नहीं बताना है कुछ …
तुम भीग जाओगे आंसुओ से…
और रूठ जाओगे मुझसे…
और मै न मना पाऊँगी….
अपनी बेचैनी को , खुद संभाल नही पाऊंगी. .
राते बीत जाएंगी यादो मे, कुछ खुद का तो कुछ अपनों का, यूँ ही कटती है कुछ लम्बेहे अपनों के यादों मे ।।
अब बस……😒😒
स्वरा कुमारी आर्या ✍️✍️