“आज मैं झांकती हूँ “
यादों के पर्दे उठा कर ,
आज मैं झांकती हूँ।
कितने झिलमिलाते,
रोशनी के कतरे हैं लहराते,
कुछ गुनगुनाते से धुन,
कानों में रस हैं घोलते,
कभी नयन हो सजल हैं जाते,
कभी मृदु हास की लकीरें,
मंद सी होठ पर हैं खिंच जाती,
यादों के सिलवटों में फिर से,
आज मैं झाकती हूँ।
कितने सुलगते प्रश्न,
अब भी हैं हरे ,
कुछ अधूरे और कुछ,
मन से भी गहरे,
यादों के भुरभुरे रेत में फिर से,
आज मैं झाकती हूँ।
©निधि…