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25 Feb 2022 · 1 min read

आज फिर से…

आज फिर से क़ब्र पर आया कोई और रो गया
आज फिर जगकर हँसा मैं और हँस कर सो गया

देर तक ठहरी रहीं आँखें मेरी उस नक्श पर
वो गुलाबी रंग और चेहरा हसीं सब खो गया

आँख का जादू गया और चाल की मस्ती गई
हुस्नवालों का भी देखो हाल कैसा हो गया

वक़्त को अपना न समझो वक़्त अपना है नहीं
वक़्त किस-किस को न जाने कैसे-कैसे धो गया

नासमझ तू मत समझ सब कुछ है तेरे हाथ में
तूने जो सोचा था क्या वैसा ही सब कुछ हो

– शिवकुमार ‘बिलगरामी ‘

2 Likes · 1 Comment · 174 Views
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