आज दोस्तों के साथ – महफ़िल
आज दोस्तों के साथ महफिल सजी थी
कहानी मोहब्बत की सबने कही थी
कहीं नाम नहीं था तुम्हारा
शायद हमें आगे बढ़ने की बहुत ख़ुशी थी
बड़ा सुकून था तुम्हारे नाम के बिना
मगर इस मुस्कुराहट में कहीं ना कहीं थोड़ी कमी थी
आज दोस्तों के साथ महफिल सजी थी
एक वक़्त तुम्हारी यादें सब कुछ थी मेरा
मगर अब कागज़ के टुकड़ों में तू ही छुपी थी
बड़ी सजावट है मेरे शहर जो तू नहीं है
कभी तेरे लिए बस तेरे लिए आँखों में नमी थी
आज दोस्तों के साथ महफ़िल सजी थी
ख़ुशी थी आज बहाना था तुझे भूल जाने का
ख्वाहिश थी आगे बढ़ने की और वक़्त था तुझसे दूर जाने का
कभी मोहब्बत ना आज़माना यारो
यही बात फिर से हमने सबसे कही थी
आज दोस्तों के साथ महफ़िल सजी थी
…भंडारी लोकेश ✍️