आज कृत्रिम रिश्तों पर टिका, ये संसार है ।
आज कृत्रिम रिश्तों पर टिका, ये संसार है,
विश्वास करें भी तो करें किस पर, ये भी बना व्यापार है।
जिन आँखों ने देखे, हमारे लिए स्वप्नों के संसार है,
उन्हीं के आँगन की वीरानगी, के आज हम जिम्मेदार हैं।
हृदय में जिनके, हमारे लिए बस प्यार हीं प्यार है,
उन्हें हमारे घरों में मिलता, आज बस तिरस्कार है।
जिन हाथों से खाये निवालों पर, हम कहते बस हमारा अधिकार है,
क्यों कर्त्तव्यवहन करने की बेला में, मन में छिपता एक गद्दार है?
जिनके परिश्रम और निष्ठापूर्ण परवरिश, हमारे अस्तित्व के आधार हैं,
क्यों उन वृद्ध आँखों की उमीदों पर, करते हम हर क्षण प्रहार हैं?
शीश झुकाते हैं वहाँ, जहां मिलता ईश्वर का दरबार है,
पर जिन्होंने जन्म दिया, उन माता-पिता से ना रखते कोई सरोकार हैं।
जिन्होंने पालने में पड़े, हमारे नन्हें पैरों का किया श्रृंगार है,
आज उनके हीं पगों को दिखाते, हम वृद्धाश्रम का उपेक्षित द्वार हैं।
कलयुग की इस रीत का ना समझ आये, ये कैसा प्रचार-प्रसार है,
की जिस दीये को रौशनी फैलानी थी, आज उसी ने किया ये घनघोर अंधकार है।