आज की हकीकत
सच को दबाकर झूठ को उछाला जा रहा है,
ये वो दौर है जब रावण को भी राम बनाया जा रहा है,
एक चेहरे के पीछे दस चहरों को छिपाया जा रहा है,
हर जगह बस एक ही चेहरा दिखाया जा रहा है,
अब समाज नहीं बाजार हो गयी है ये दुनियाँ,
इंसानों के साथ जमीर का भी सौदा किया जा रहा है,
कब खिसक जाए जमीन पैरों के नीचे की पता नहीं,
जहाँ खड़े हैं उसी जमीन को पहले खोदा जा रहा है,
प्यार का नक़ाब पहनकर हर आस्तीन में साँप बैठे हैं,
जो डस रहे हैं, उन्हीं के द्वारा हाल-चाल पूछा जा रहा है,
कुछ पुरानी रिवायतों ने संभाल रखा है दुनियाँ को,
वरना इंसान तो इंसान को ही खाए जा रहा है,
खून के रिश्तों में बस खून का लाल रंग ही बाकी है,
वरना माता-पिता के द्वारा दुश्मन पैदा किया जा रहा है,
इंसान का घमंड इस कदर बढ़ गया है देखो,
राम ने संसार बनाया राम को ही लाने का प्रचार किया जा रहा है।।
prAstya……(प्रशांत सोलंकी)