आज का मानव
विधाता ने
कलियुगी मानव की
हृदयभूमि में
पाप के बीज डाले –
पोषक ने अंकुरित पौधे को
स्वार्थ के पानी से सिंचित कर –
मानवता एवं संस्कृति के
ताप से बचाने
नफरत की बाड़ लगाई –
कठिन परिश्रम से सहेजी फसल
यूँ फलीभूत हुई
नास्तिकता, निर्लज्जता एवं पाशविकता से
लदी सजी ।