*सबके मन में आस है, चलें अयोध्या धाम (कुंडलिया )*
शीर्षक: लाल बहादुर शास्त्री
गुजर गई कैसे यह जिंदगी, हुआ नहीं कुछ अहसास हमको
पग-पग पर हैं वर्जनाएँ....
सिय का जन्म उदार / माता सीता को समर्पित नवगीत
मेरे टूटे हुए ख़्वाब आकर मुझसे सवाल करने लगे,
ग़ज़ल(ज़िंदगी लगती ग़ज़ल सी प्यार में)
आपका हर दिन तरक्की बाला हो,
संविधान में हिंदी की स्थिति
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
इंद्रदेव समझेंगे जन जन की लाचारी
सुख की तलाश आंख- मिचौली का खेल है जब तुम उसे खोजते हो ,तो वह
जगत कंटक बिच भी अपनी वाह है |
Pt. Brajesh Kumar Nayak / पं बृजेश कुमार नायक
#शीर्षक:-नमन-वंदन सब करते चलो।
कभी उन बहनों को ना सताना जिनके माँ पिता साथ छोड़ गये हो।
Sandhya Chaturvedi(काव्यसंध्या)
जीवित रहने से भी बड़ा कार्य है मरने के बाद भी अपने कर्मो से
जिंदगी तेरे कितने रंग, मैं समझ न पाया