आज और अतीत
कठिन परिश्रम का
प्रतीक
मंगू मजदूर
प्रति दिन
अपने परिवार
की भूख के लिए
जेठ की तपती
दोपहरी तक
श्रम करता था
फिर भी
कभी कभी
अपना निवाला
बच्चों को खिलाकर
स्वयं केवल
ठंडा पानी पीकर
टूटी खाट पर
रात्रि भर
भूख के कारण
गगन के तारे
गिनकर
हल्की झपकी के साथ
सोकर
प्रभा की प्रथम वेला मे
उठकर
मुस्कराते हुए
र्कम पथ पर
एक आशा के साथ
चला जाता था|
आशा
निराशा का द्वन्द्व
र्निधनता
तंगी
शोषण
से पोषित
होकर
पेट
सूखे पात की भांति
पीठ मे
मिल गया था
अपरिमित
कष्ट के कारण
डर गया था|
किन्तु
पवित्र आत्मीय
सन्त की
सजगता
ईमानदारी
र्कमठता
राष्ट्र के लिए
कुछ करने
की इच्छा शक्ति
साहस
दृढ़ संकल्प
के कारण
मंगू का
घर अब
अन्न
की अधिकता
के कारण
भर गया
सब कुछ
कुछ बर्षो में ही
बदल गया|
मंगू
गैस पर
अपनी
पत्नी को
रोटी सेंकते
देखता
तब
मन ही मन
फक्कड़ संत को
हजारों आशीर्वाद
देकर
बड़बड़ाकर
अतीत को
कोसता|
रचयिता
रमेश त्रिवेदी
कवि एवं कहानीकार
ग्राम-नरदी, पसगवां, लखीमपुर खीरी उत्तर प्रदेश