आग घर में
आग घर में लगाना नहीं है
उस धुएँ को बढ़ाना नहीं है
एक बारे लगे जो दिलों में
बस मुहब्बत घटाना नहीं है
बँट गये आज अपने सदा को
पास अब क्यों बुलाना नहीं है
रोज दीवार उठती रहे जो
दूरियाँ ये बढाना नहीं है
दीखता है नहीं वो अदब अब
बाप से मुँह चलाना नहीं है
मात ने जन्म तुझको दिया जब
बात कुछ पर सताना नहीं है
तू सहन शीलता को दिखाए
धैर्य क्यों फिर बढ़ाना नहीं है
बात इतनी मधुर कर हमेशा
शूल तुझको चुभाना नहीं है
मान करना न सीखे कभी तू
पशु तुझे अब बनाना नहीं है