आगोश मिले
हल्क़ा-ए-आग़ोश मिले
तिरे निगाह में पाग़ोश मिले
आओ कभी नज्म़ ग़ज़ल बन कर
हसरत है अब आफ़ियत-कोश मिले
सुकूँ ए क़ल्ब होगा मिरे लिए गर
आँख खुलते तिरा रु पुर-जोश मिले
लिखूँ तो लिखूँ क्या तिरा रूह छूते
ए’तिबार-ए-अक़्ल-ओ-होश मिले
क़ितमीर हि पर रख दो लबों पे लब
आख़िर मुझे भी इश्क में नोश मिले
क्या सितम है हाथों की लकीर का कुनु
हम मिले भी किसी को तो ख़मोश मिले