“आगाज”
आलम ए तन्हाई में खोना चाहती हूं,
कुछ वक्त शुकून से सोना चाहती हूं।
होकर देख ली इन गैर से अपनों के,
अब सिर्फ़ खुद की होना चाहती हूं।।
उन राहों का रुख़ कर लिए,
मंज़िल जिनकी तन्हाई है।
सफ़र शुरु हो चुका,
हमसफ़र मेरी पढाई है।।
ताल्लुक़ रख क़िताब से,
ये कभी पराया नहीं होता।
फलसफा, किसी भी दफा,
किसी भी वक्त ज़ाया नहीं होता।।
ओसमणी साहू ‘ओश’ रायपुर ( छत्तीसगढ़)