Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
20 Jul 2017 · 2 min read

आखिर हम किस ओर जा रहे हैं?

हम किस ओर जा रहे हैं? अपने वजूद को खोने तो नहीं लगे हैं? सभ्यता तार- तार हो रही है, संस्कृति पतन के पथ पे अग्रसर हो रही है, बड़े-छोटे का लिहाज अंतिम सांसे ले रहा है, प्रेम, ममत्व, आदर, सम्मान, सेवा-सत्कार आज भीष्म पितामह की तरह सवशैया पर लेटा लाचार दिखने लगा है।
आखिर हम जा किस ओर रहे है?
क्या ये वहीं प्रगतिशीलता का एकमेव मार्ग है जिसके तलाश में हम सदियों से खोजरत थे! संयुक्त परिवार अब पुस्तकों की विषय वस्तु मात्र हैं। बड़े -बुजूर्ग आज बृद्धाश्रम की शोभा बढाने को मजबूर हो रहे है। बच्चे माँ बाप के बजाय आया द्वारा पलने लगे हैं।
गुरु-शिष्य का रिश्ता भी आज व्यवसायिक हो गया है , मास्टर जी की वो ज्ञानदायिनि छड़ी अब नजाने कहाँ खो गई।मित्रता आज स्वार्थ साधना की अहम कुंजी बन गई है।
हम सभी पे अंग्रेजियत का भूत सवार हो चूका है, जिसके फलस्वरूप हम अपनी धरातल, अपनी पूरखों की विरासत हमारी संस्कृति हम खोते जा रहे हैं।
आज एक, दो, तीन की जगह वन, टू, थ्री ने ले लिया। क, ख, ग, विलुप्त होने के कागार पे खड़ा है। हम वाकई आधुनिक हो गये है।
कभी भक्ति रस का पान करने वाले हमारे उस समाज को आज “डी.जे.” नामक संक्रमण ने संक्रमित कर दिया है।
रिश्तों का विखण्डन आज अपने चर्मोत्कर्ष पर है। समाजिकता कहीं खो सी गई है।
स्वार्थपरकता, वैमनस्यता सर्वत्र अपना पाव जमा चूकी है।
हमारे गांव जो कभी पगड़ंडीयों, बाग-बगीचो, कुयें-तालाबों, कच्चे मकानों एवं अपने निर्मल संस्कारों व सुमधुर सभ्यता के द्वारा पहचाने जाते थे आज वहाँ भी शुन्य का वास दिखता है।
आखिर हम किस ओर चल पड़े हैं?
क्या सही मायने में संप्रभुता के चरम बिन्दु तक आ चूके हैं या इससे भी कुछ और आगे जाना बाकी है?
क्या यहाँ से हम उसी पिछड़ेपन की ओर लौट सकते हैं जहाँ संयुक्त परिवार था, आपसी भाईचारा व समाजिक सत्कार था, जहाँ दादी की कहानियां, माँ की लोरी, दादा का दुलार भरा फटकार था।
क्या ऐसा हो सकता है या हम बहुत आगे निकल चुके है जहाँ से वापसी का कोई मार्ग ही शेष न रहा।
अब तो एक ही मार्ग दृश्य हो रहा है!
हे प्रभु अब करो तुम प्रलय
एक सृष्टि नई रचाने को
आज जो अपने दूर हो रहे
फिर से उन्हें मिलाने को।
पं. संजीव शुक्ल “सचिन”
दिल्ली
9560335952
९५६०३३५९५२

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 317 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from संजीव शुक्ल 'सचिन'
View all
You may also like:
मेरी कलम से…
मेरी कलम से…
Anand Kumar
चमचम चमके चाँदनी, खिली सँवर कर रात।
चमचम चमके चाँदनी, खिली सँवर कर रात।
डॉ.सीमा अग्रवाल
22)”शुभ नवरात्रि”
22)”शुभ नवरात्रि”
Sapna Arora
ग़ज़ल
ग़ज़ल
ईश्वर दयाल गोस्वामी
*मै भारत देश आजाद हां*
*मै भारत देश आजाद हां*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
रिश्ते
रिश्ते
विजय कुमार अग्रवाल
आए बगुला भगत जी, लड़ने लगे चुनाव( हास्य कुंडलिया)
आए बगुला भगत जी, लड़ने लगे चुनाव( हास्य कुंडलिया)
Ravi Prakash
बहुत कीमती है पानी,
बहुत कीमती है पानी,
Anil Mishra Prahari
Quote..
Quote..
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
2266.
2266.
Dr.Khedu Bharti
गुरु महादेव रमेश गुरु है,
गुरु महादेव रमेश गुरु है,
Satish Srijan
■ पसंद अपनी-अपनी, शौक़ अपने-अपने। 😊😊
■ पसंद अपनी-अपनी, शौक़ अपने-अपने। 😊😊
*Author प्रणय प्रभात*
नवीन और अनुभवी, एकजुट होकर,MPPSC की राह, मिलकर पार करते हैं।
नवीन और अनुभवी, एकजुट होकर,MPPSC की राह, मिलकर पार करते हैं।
पूर्वार्थ
💐अज्ञात के प्रति-141💐
💐अज्ञात के प्रति-141💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
रमेशराज की गीतिका छंद में ग़ज़लें
रमेशराज की गीतिका छंद में ग़ज़लें
कवि रमेशराज
माना   कि  बल   बहुत  है
माना कि बल बहुत है
Paras Nath Jha
कभी-कभी हम निःशब्द हो जाते हैं
कभी-कभी हम निःशब्द हो जाते हैं
Harminder Kaur
इंद्रधनुष
इंद्रधनुष
Harish Chandra Pande
"ख़्वाहिशें"
Dr. Kishan tandon kranti
With Grit in your mind
With Grit in your mind
Dhriti Mishra
'पिता'
'पिता'
पंकज कुमार कर्ण
तूणीर (श्रेष्ठ काव्य रचनाएँ)
तूणीर (श्रेष्ठ काव्य रचनाएँ)
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
ग़ज़ल/नज़्म - हुस्न से तू तकरार ना कर
ग़ज़ल/नज़्म - हुस्न से तू तकरार ना कर
अनिल कुमार
ऊपर चढ़ता देख तुम्हें, मुमकिन मेरा खुश होना।
ऊपर चढ़ता देख तुम्हें, मुमकिन मेरा खुश होना।
सत्य कुमार प्रेमी
गौभक्त और संकट से गुजरते गाय–बैल / मुसाफ़िर बैठा
गौभक्त और संकट से गुजरते गाय–बैल / मुसाफ़िर बैठा
Dr MusafiR BaithA
यह उँचे लोगो की महफ़िल हैं ।
यह उँचे लोगो की महफ़िल हैं ।
Ashwini sharma
कैसा हो रामराज्य
कैसा हो रामराज्य
Rajesh Tiwari
हम शरीर हैं, ब्रह्म अंदर है और माया बाहर। मन शरीर को संचालित
हम शरीर हैं, ब्रह्म अंदर है और माया बाहर। मन शरीर को संचालित
Sanjay ' शून्य'
कितने ही गठबंधन बनाओ
कितने ही गठबंधन बनाओ
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
हुनर
हुनर
अखिलेश 'अखिल'
Loading...