आखिर वो माँ थी
आखिर वो माँ थी। पढ़ी-लिखी ना होकर भी हर रोज बेटे की कॉपियाँ चेक करती। वह राइट और क्रॉस का मतलब बखूबी जानती थी। यही उनकी सीमाएँ भी थीं।
इसके अलावा समय-समय पर बेटे को प्रोत्साहित कर उसका मनोबल बढ़ाती। मगर आज यह क्या? दो कॉपियों में लाल स्याही से कुछ लिखी हुई देखी तो उन्हें लगा कि कुछ तो गड़बड़ है।
काम से लौटकर शाम को पति के घर आने पर उसने कहा- ‘जीतू से कॉपी मंगाकर तो देखो। आज कुछ तो गड़बड़ है।’
कॉपी को देखते ही पिता हँस पड़े। कॉपी में लाल स्याही से ‘एक्सीलेंट’ लिखा था। मगर उनकी हँसी बच्चे की काबिलियत से अधिक बच्चे की माँ की मासूमियत पर थी।
प्रकाशित लघुकथा-संग्रह : ‘मन की आँखें’ (दलहा, भाग-1) से,,,,
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
अमेरिकन एक्सीलेंट राइटर अवार्ड प्राप्त।