आखिर मैंने भी कवि बनने की ठानी MUSAFIR BAITHA
कल कविता चला बनाने मैं
पर मैटर ही था ना मिलता
सोचा, मेरे माइंड की कमजोरी है कि
मैं कविता नहीं बना सकता
पर याद आ गई वो घटना
जब स्कूल में कवि सम्मेलन हुआ था
कविताओं के सरस मृदु रसों में
सारा विद्यालय सराबोर हुआ था
मैंने भी सोचा कि आज
कुछ कवियों की रचना जुटा लूं
कुछ इसकी पंक्ति कुछ उसकी
अपनी कविता में सजा लूँ
फिर कभी बन अटेंड करूं मैं कवि सम्मेलन
और पाठ करूं अपनी कविता का
मैं भी प्रकाशित हो जाऊं वैसे ही
जैसे चंद्र है प्रकाशित ले प्रकाश सविता का
न होगा टाइम खर्च न ही माइंड
पर कवि तो बन जाऊंगा
कविता सुना सुना कर आपका मन बहलाऊँगा
और जग में नाम कमाऊँगा।
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【NOTE : यह कविता मैंने नौवीं कक्षा में एक ‘डिमांड’ पर लिखी थी। मैं केंद्रीय विद्यालय जवाहरनगर (सुतिहारा), सीतामढ़ी, बिहार का छात्र था। हिंदी विषय के लिए प्रोजेक्ट वर्क के तहत मुझे कविता लिखने को कुल 8 कविता-शीर्षक मेरे हिंदी शिक्षक ने दिए थे, जिनमें एक शीर्षक ‘आखिर मैंने भी कवि बनने की ठानी’ था।
मुझे इस 10 अंक के परियोजना कार्य में 10 अंक मिले थे।
आप कह सकते हैं, गुरु नागेंद्र झा की उम्मीदों पर मैं खरा उतरा था!
अपनी पीठ ख़ुद थपथपाता चलूँ तो पूत के पाँव पालने में ही दिख गए थे!😊】