आखिर क्या कर रहे हो
व्यंग्य
आखिर क्या कर रहे हैं
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काश!
हमारे आपके भी भाग्य ऐसे होते
किसी तरह सांसद या विधायक हो गये होते,
गली मोहल्ले बाजारों मंदिरों की बजाय
उनकी तरह हम भी सदन में
फ्लाइंग किस का अधिकार रखते।
और कुछ कर पाते या नहीं
कम से कम अपनी फजीहत तो कराते।
हमारे संविधान में ये दोहरा मापदंड
कब से चला आ रहा है,
सदन में सांसद विधायक कुछ भी करें
या कुछ भी बोलें, कुछ भी करे
तो ये अभिव्यक्ति की आजादी है,
पर आम आदमी पर पाबंदी है
लोकतंत्र के नाम पर
ये जनता के पैसों को बर्बाद कर रहे हैं,
हमारे टैक्स के पैसों से
गुलछर्रे उड़ा रहे हैं,
बिना काम के भी सारे लाभ ले रहे हैं।
ये सांसद विधायक बनकर हमें
ठेंगा क्यों दिखा रहे हैं,
लोकतंत्र के नाम पर
सदन में भद्दा मजाक क्यों कर रहें हैं?
अपनी जिम्मेदारी से भाग क्यों रहे हैं?
अपनी सुविधा से ही सदन में आ जा रहे हैं
हमें आप को गुमराह क्यों कर रहे हैं?
ये लोकतंत्र का उपहास नहीं तो
आखिर क्या कर रहे हैं?
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश
© मौलिक स्वरचित