आखिरी ख़्वाहिश
मैं तुमसे कुछ नहीं चाहता
सच में कुछ नहीं चाहता
लेकिन अगर जिद है तुम्हारी
मुझे कुछ देने की
तो सौप तो तुम मुझे
मेरे हिस्से की नफ़रत
जो तुम्हारे अंदर कैद है
सेहरा किये जा रही जो
मेरी यादों को
और इन सेहरा में गिरी
आन्सूओं की उन बुन्दो को भी
तुम्हारी याद में मेरी
आंखों से गिरे थे
और फिर खो गये इस सेहरा में