आखर-आखर मोती (गीतिका-संग्रह) समीक्षा-मनोज अरोड़ा
आखर-आखर मोती (गीतिका-संग्रह)
गीतिकाकार-डॉ. साधना जोशी ‘प्रधान’
प्रकाशक-कॉ-ऑपरेशन पब्लिकेशन्स, जयपुर
समीक्षक-मनोज अरोड़ा, जयपुर
कविता या गीत न केवल मानव-मन को सुकून पहुँचाते हैं, बल्कि शिक्षा भी देते हैं, परन्तु ये पाठक या श्रोता की अभिरूचि पर निर्भर करता है कि वे उन्हें किस प्रकार ग्रहण करते हैं? किसी विचारक का कथन है कि रचनाकार महान नहीं होता, बल्कि उनके द्वारा लिखी वाणी या रचना महान होती है जो कि जन-हिताय व स्वान्त: सुखाय कहलाती है। तभी तो वरिष्ठ गीतिकाकार डॉ. साधना जोशी ‘प्रधान’ ने अपनी नवकृति ‘आखर-आखर मोती’ के आवरण पृष्ठ पर मोतियों जडि़त शब्दों में लिखा है—
शब्द-शब्द संदेश दे, अमिट ज्ञान की खान
दे समाज को जो दिशा, रचना वही महान
उक्त पंक्ति के आधार पर रचनाकार डॉ. साधना जोशी ने 85 गीतिकाओं को अनमोल गीतिका-संग्रह में संंग्रहीत किया है, जिसमें गीतिकाकार ने मापनीयुक्त छंदों को सरल व सरस भाषाशैली में पाठकों को बेशकीमती ग्रन्थ सौंपा है। ‘आखर-आखर मोती’ (गीतिका-संग्रह) दोनों श्रेणियों के पाठकों (जो मात्राओं का ज्ञान रखते हैं व तुकान्त अतुकान्त का फर्क समझते हैं तथा दूसरे वे जो मात्राओं को नहीं समझते लेकिन कविता व गीत पढ़ते हैं) के लिए फायदेमंद साबित होगा, क्योंकि संग्रह में शामिल समस्त गीतिकाओं को उन्हें समझने तथा गाने में जरा भी मुश्किल नहीं होगी।
गीतिका-संग्रह में मुख्यत: बात यह सामने आती है कि डॉ. जोशी द्वारा प्रत्येक गीतिका में जगत-हिताय संदेश समाए हैं, जैसे शुरू की पाँच गीतिकाएँ ईश-वन्दना के पश्चात् अपने वतन के लिए जिन शब्दों से गीतिका प्रारम्भ की, आप बानगी देखिए—
छूटें सकल सुख पर नहीं अपमान होना चाहिए
अपनी धरा अपने वतन का मान होना चाहिए।
इससे आगे हमारी मातृभाषा के लिए लिखती हैं—
हिन्दी हमारी शान है, हिन्दी हमारी आन है
हिन्दी हमारी देह है, हिन्दी हमारी जान है।
कविता रस के प्रति पाठकों को सचेत करते हुए गीतिकाकार ने बहुत ही सुन्दर उल्लेख किया है—
शिल्प-साधना हो सुघड़, बढ़े सृजन का मान
अलंकार, रस, छंद हैं, कविता के प्रतिमान।
कलमकार को समाज में रहते क्या और कैसे लिखना चाहिए? उनकी कलम में कितनी ताकत हो और वो बेधड़क होकर रचनाओं के माध्यम से समाज को नई दिशाएँ दें और जन-जन की आवाज बनें ताकि उससे किसी एक का नहीं, बल्कि सम्पूर्ण देश का विकास हो। इसके प्रति बहुत ही आकर्षक गीतिका ‘कलम प्रखर बनाइए’ में डॉ. जोशी लिखती हैं—
डरें नहीं कहें खरा, सुषुप्त को जगाइए
सदा लिखें यथार्थ बस, कलम प्रखर बनाइए।
कड़ी को आगे बढ़ाते हुए डॉ. जोशी उन लोगों का मनोबल बढ़ाते हुए लिखती हैं, जो जि़न्दगी की कठिनाइयों के आगे घुटने टेक देते हैं या फिर हार मानकर बैठ जाते हैं। गीतिकाकार एक गीति ‘आभार तेरा जि़न्दगी’ में लिखती हैं—
घाव गहरे हैं दिये आभार तेरा जि़न्दगी
मानती हूँ मैं इसे बस प्यार तेरा जि़न्दगी।
अन्तिम पड़ाव में डॉ. जोशी पाठकों को चिरनिद्रा से बाहर आने का आह्वान करती हैं। वैसे तो जागते हम सभी हैं परन्तु यहाँ गीतिकाकार का मसकद नींद से आँखें खोलने का नहीं, बल्कि खुले नेत्रों से जो हम अन्याय होता देखते हैं उस पर आवाज उठाने का है, वह चाहे आतंकवाद के खिलाफ बुलंद आवाज करने का हो, धरोहरों को बचाने का हो या देश की आन-बान व शान पर मर-मिटने का हो, मकसद होना चाहिए। एक गीतिका ‘जगाने कौन आएगा’ में वे लिखती हैं—
जड़ें अन्याय की गहरी, मिटाने कौन आयेगा
नहीं प्रेरक नजर आता जगाने कौन आयेगा।
कुल मिलाकर गीतिकाकार डॉ. साधना जोशी ‘प्रधान’ द्वारा नव-सृजित ‘आखर-आखर मोती’ गीतिका-संग्र्रह प्रत्येक वर्ग के पाठकों के हृदय में अपना विशेष स्थान बनाएगा, ऐसा विश्वास किया जा सकता है।