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6 Apr 2018 · 1 min read

आओ हम सब बनें भगीरथ

आओ हम सब बनें भगीरथ

एक भगीरथ के तप से ही, धरती पर गंगा आई
शिव के सहस्त्रार से होकर, अमृतमय जल ले आई
गंगाजल का एक आचमन, तन मन पावन करता था
पाप ताप को धोते धोते, पतित पावनी कहलाई

उद्गम से जब चलती है तो, अमृत लेकर चलती है
देवभूमि तक पावनता से, कल कल बहती रहती है
इसके पावन गंगाजल से, जड़ चेतन जीवन पाते
औषधीय गुण धारण करके, तृप्त सभी को करती है

पाप हमारे धोने को ये अविरल बहती जाती है
तन मन को पावन करने में, तनिक नहीं सकुचाती है
पर हम अपनी सभी गंदगी, फेंक इसी में जाते हैं
मैल हमारा धोते धोते खुद मैली हो जाती है

गंगा के अविरल प्रवाह पर, बाँध अनेकों बना दिए
अपशिष्टों के नद नाले भी, गंगाजल में मिला दिए
बूँद बूँद जल में अमृत था, बूँद बूँद अब गरल हुआ
पाप मोचिनी को मलीन कर, हमने कितने पाप किए

आओ हम सब बनें भगीरथ, गंगा को फिर स्वच्छ करें
स्वच्छ रखें नाले नाली सब, अपशिष्टों से मुक्त करें
धर्म कर्म के सभी विसर्जन, धरती में करना सीखें
स्वच्छ बने ये गंगा फिर से, पुनः आचमन सभी करें

श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।

Language: Hindi
482 Views
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