“आओ बचाएँ जिन्दगी”
“आओ बचाएँ जिन्दगी”
न जाने ये कैसा वक्त आया
अब हवा-पानी बिक रहा,
नदियों के भी ठेके हो गए
प्यास से गला सूख रहा।
प्याऊ घर के बैनर लगे
भोजन का रिवाज गुम हुआ,
साँसों की काला बाजारी में
ऑक्सीजन का मोल हुआ।
“आओ बचाएँ जिन्दगी”
न जाने ये कैसा वक्त आया
अब हवा-पानी बिक रहा,
नदियों के भी ठेके हो गए
प्यास से गला सूख रहा।
प्याऊ घर के बैनर लगे
भोजन का रिवाज गुम हुआ,
साँसों की काला बाजारी में
ऑक्सीजन का मोल हुआ।