आईना
आईना
कभी कभी खुद से भी बात कर लिया करो
आइने में रहकर खुद आइनें से बात कर लिया करों
है कहाँ शक्ल!वो शक्ल कहाँ खो गयी जरा देखा करों
वजुद में कहाँ हम खड़े है कहाँ उठ गये! जरा ये भी खुद में देख लिया करों….
सच कहती हूँ आइने कभी झूठ नहीं बोलते देख लो
हर बनावटी चेहरे का सच उगल देते हैं आइने;देख लो वो लाख चाहे आइने को चुर कर दे वो सच न बदलेंगे
जो दिखा है आज सच हस्ती आइने में! वो चेहरे कभी बदला नहीं करते देख लो….
तुम लाख चाहों अक्स आइने में अपने जैसा हो! मुमकिन नहीं
बनावटी चेहरे का ही सच उगले आइने आज बस! ये सभंव नहीं
चाहे लाख कालिख से पोत लो तुम हर एक वो आइने जो आप मुताबिक नहीं
मगर वो आइने है हुज़ूर हस्ती!जो कालिख से रगं कर भी तुम्हारें वजुद को खोते नहीं…..
इसलिए आइने अपने आइनात को बरकरार रखते हैं
जैसें भी है आजकल आइनें में!उसे वैसे ही सजोंते है
जो देखकर आइनें को खुद!खुद को पढ़ लिया करते हैं
वो ही हिमायती लोग खुद को पहचानने के लिए सदा
अपने आइने को पुछा करते हैं मैं कौन हूँ! …
स्वरचित कविता
सुरेखा राठी