“आंसू “
रुके हो इतने दिनों से,
तो थोड़ा और थम जाओ।
संभल जाऊं मैं जरा,
और थाम लूं खुद को,
फिर निकल पड़ना,
नही तो कहीं,
मैं बह ना जाऊं,
टूट कर बिखर न जाऊं,
साथ बस तुम्हारा है,
जब तक तुम ठहरे हो,
मैं भी रुकी हूं,
तो थोड़ा और थम जाओ।
धार जो निकल पड़ी,
तो कहां रुक पाऊंगी,
तिनके तिनके संग,
मैं भी बह जाऊंगी,
तुम तो चल दोगे,
मैं खुद में सिमट जाऊंगी,
इसलिए रोकती हूं तुम्हें,
थोड़ा और थम जाओ,
मेरी आंखों से बरस गए जो
मैं कमजोर पड़ जाऊंगी,
जो रुके हो इतने दिनों से,
तो थोड़ा और थम जाओ।
© डा० निधि श्रीवास्तव “सरोद”