आंसू कहाँ बहाने निकले
जनता को बहकाने निकले
नेता वोट जुटाने निकले
मंचों पर जब जंग छिड़ गयी
क्या क्या तो अफसाने निकले
नेता,अफसर,चमचों के घर,
नोट भरे तहखाने निकले
कहते थे घर-बार नहीं, पर
उनके बहुत ठिकाने निकले
जब गरीब को देना था कुछ
घुने हुए के दो दाने निकले
दिखी रौशनी कहीं शमा की
जलने को परवाने निकले
फैंक रहे थे मुझ पर पत्थर
सब जाने पहचाने निकले
ढूंढ रहे थे मंदिर मस्जिद
गली गली मयखाने निकले
अच्छे थे आँखों में आँसू
हम भी कहाँ बहाने निकले