आंसू – एक विचार
आंसू
किसी की आँखों से आंसू यूं ही नहीं बह जाया करते | ये ग़मों का वो समंदर बन बहते हैं जिसमे आह का एक ज्वार सा उठता है जो संवेदनाओं के महल को धराशायी कर उस व्यक्ति को उसके द्वारा किये गए अनुचित प्रयासों की परिणिति के रूप में जीवन भर रुलाती है | कहते हैं कोशिश यह होनी चाहिए कि हम किसी के दिल को पीड़ा या गम के सागर में न डूबोयें यदि ऐसा होता है तो हम यह मानें कि हमने मानवीय संवेदनाओं को अपने जीवन में तिलांजलि दे दी है | किसी की आँखों में आंसू आना उसके भीतर चल रहे द्वंद को समझ पाना आसान नहीं है |
आंसू ख़ुशी के हो तो दुआएं बन उभरते हैं यदि ये आंसू किसी , शाब्दिक प्रहार या किसी अनैतिक कार्य की परिणिति होते हैं तो उस व्यक्ति को भीतर तक कष्ट देते हैं जिसे इस पीड़ा से होकर गुजरना पड़ा है | हो सके तो किसी की राह का पत्थर चुन देखो न कि किसी की राह का रोड़ा बनकर खड़े हों |
आंसू जब बहते हैं तो आह का एक समंदर सा रोशन कर जाते हैं जिसके ज्वार में सब कुछ समाप्त हो जाता है डूब जाता है | किसी की आह लेना यानी खुद को जीवन के अनचाहे अंत की ओर प्रस्थित करना है | हमारी कोशिश ये हो कि हमारा जीवन किसी की आह की परिणिति न हो और न ही हम किसी के जीवन में आंसू का सागर निर्मित करें | हम मानवीय संवेदनाओं को अपने जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बना लें और दूसरों के ग़मों में शामिल हों और इस जिन्दगी का जीने लायक बना लें |