Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
27 Mar 2020 · 5 min read

आधी फिल्म पुरा मजा

*************** ( आधी फिल्म पुरा मज़ा )**********

मेमसाब …. अपुन चोर नहीं है मेमसाब….! अपुन ने चोरी नहीं किया मेम साहब….!!अपुन चोर नहीं है मेमसाब…..आ…पु…न……चोर…. नहीं है…. मेमसाब..!
क्या मस्त एक्टिंग कियेला अमिताभ …!!! रघु ने नन्दू से पुछा….नन्दू ये सबी हीरो लोग सच में रोता क्या…? नई ये ये सब आंख में कुछ डालता है जिससे आंसू निकलता है नन्दू ने कुछ इस तरह बताया जैसे वो एक्सपर्ट हो।और लास्ट में अमजद को भी भोत मारा क्या फाइट किया मजा आ गया…और वो गाना भी मस्त था….तेरे बिना भी क्या जीना…… ! पर पहिले का स्टोरी तू तो बता फिर मैं तेरे को पुरा स्टोरी बताएगा… रघु बोला।और नन्दू शुरू हो गया…ये गाना भी अमिताभ मस्त गाएला है .. मुकद्दर का सिकंदर कहलाएगा…. नई रे अमिताभ नई गाएला ये गाना ये लोग खाली पीली होंठ हिलाता है और गाना दूसरा लोग गाता है… इसी तरह दोनों मजा लेते हुए कहानी का पोस्टमार्टम करते हुए घर की ओर चल पड़े ।
नंदू और रघु दोनों की उम्र करीब 14,15साल होगी दोनों ही एक दूसरे के पड़ोस में रहते थे बचपन से दोनों साथ पले बढ़े होने की वजह से दोनों में अच्छी दोस्ती थी ,याने की लंगोटिया यार ही थे। दोनों ही फिल्मों के काफी शौकिन थे । फिल्मों का शौक उन्हें और भी करिब ले आया था मगर प्राब्लम ये था कि एक फिल्म की टिकट के पैसे जमा करने के लिए 20,25दिन और कभी- कभी एक माह से भी ज्यादा इंतजार करना पड़ता था ।इस वजह से बहुत सी फिल्में देख नहीं पाते थे ।दोनों में से एक फिल्म देख कर आता और दूसरे को स्टोरी सुना देता पर देखने और सुनने में काफी फर्क होता है इसी तरह चल रहा था की नन्दू बोला ….रघु एक काम करते हैं आधी फिलम तू देख आना फिर आधी मैं देख आऊंगा और दोनों एक दूसरे को आगे पीछे की स्टोरी बता देंगे क्या बोलता…? एक के खर्च में दो फिल्म..दोनों ही खुशी से उछल पड़े और तब से ये सिलसिला निरंतर चलने लगा। आज भी मुकद्दर का सिकंदर फिल्म देखकर निकले और खुशी से चहकते हुए घर आ गये।
रघु जल्दी चल ना रे ….फिलम चालू हो जाएंगी.. नंदू ने आवाज लगाई…! हौ रे आता हूं …..रघु आवाज के साथ ही भागता हुआ आ गया और दोनों सिनेमा हाल की तरफ चल पड़े। सिनेमा हाल पहूंच कर दोनों ने अपने-अपने पैसे मिलाए और एक टिकट खरीद लाए । नंदू जा पईले तू देख कर आजा फिर अपुन जाएगा …रघु बोला तो नन्दू पहले फिल्म देखने चला गया और रघु बाहर बैठ कर मध्यांतर होने का इंतज़ार करने लगा। मध्यांतर होने की बेल बजी, मध्यांतर हुआ तो पब्लिक बाहर आने लगी रघु नन्दू के आने का बेसब्री से इंतजार करने लगा । पर बहुत देर बाद भी नन्दू आता न दिखा तो रघु की बेचैनी बढ़ने लगी सभी लोग अंदर चले गए फिल्म भी पुनः शुरू हो गई । रघु इंतजार करता रह गया, मगर नन्दू बाहर नहीं आया। रघु की आंखों से आंसू छलकने को मचलने लगे और कुछ ही देर में बांध टूट गया और आंखें छलक ही आई ।
फिल्म न देख पाने की कसक गुस्से में परिवर्तित होने लगी पल-पल क्रोध अपनी चरम सीमा की ओर अग्रसर होने लगा । नंदू इतना धोखेबाज निकलेगा ,और पुरी फिल्म खुद ही देखकर उसे इस तरह धोखा देगा कभी सपने में भी सोचा न था। मध्यांतर के पश्चात गेट पुनः बंद हो गया। अब फिल्म खत्म होने तक इंतजार करने के अलावा कोई चारा न था ।उसे अपने बचपन के दोस्त से ये उम्मीद तो बिल्कुल भी नहीं थी वो इस तरह धोखा देगा । आने दो ….अपुन आज छोडेगाइच नई उसको…. मन ही मन कनमुनाते हुए फिल्म छुटने का इंतज़ार करने लगा। उसके तेवर बता रहे थे की नन्दू के आते ही उस पर टूट पड़ेगा।
इंतजार लम्बा लगने लगा….. एक एक मिनट जैसे बहुत भारी था। निश्चित समय पर फिल्म खत्म हुई…. और लोग बाहर आने लगे …. रघु ने पास ही पड़ी लकड़ी उठा ली और नन्दू के आने का इंतजार करने लगा । मगर ये क्या ….सारी पब्लिक चली गई ….पर नन्दू आता नजर ना आया ….! धीरे-धीरे क्रोध पर घबराहट हावी होने लगी । गेट पुनः बंद होता उसके पहले वो अंदर की ओर भागा … अंदर जाकर देखा तो हाल भी खाली हो चूका था ।अब तो रघु बुरी तरह घबरा गया। क्या करे क्या न करें कुछ समझ नहीं आया ।नन्दू कहां चला गया ..?क्या हुआ उसे ….?? गया किधर से….???मैं तो बाहर ही बैठा था …! अपने आप के प्रश्नों में उलझ कर रह गया। तभी गेट कीपर ने पुछा … क्या रे फिल्म खत्म हो गई घर नहीं जाना क्या ? मेरा दोस्त अंदर फिलम देखने कू आएला था पर बाहर नहीं आया उसको इच देख रेला अपुन….लगा जैसे फिर रो पड़ेगा रघु ।
तेरे बराबर का ही है क्या वो….अरे थोड़ी देर पहले एक लड़के को मेनेजर के आफिस में ले के गए … वहां जा कर देख….बोलकर वो अपने काम में जूट गया। रघु लगभग भागते हुए मेनेजर आफिस की ओर चल पड़ा। वहां पहुंचते ही जो देखा …तो उसके होश ही उड़ गए । नंदू बेंच पर बेहोश पड़ा था। क्या हुआ इसे….. नंदू उठ…..रघु ने अंदर पहुंच कर पुछा। तुम कौन हो …इसके साथ हो क्या….. मेनेजर ने बताया … फिल्म देखते देखते बेहोश होकर गिर पड़ा तो इसे यहां लेकर आए डा. को फोन किया है वो भी आता ही होगा।डा.ने आकर देखा और दवा दी तो थोड़ी देर में नन्दू को होश आ गया । नई जगह देख नन्दू हड़बड़ाया पर रघु को पास खड़े देख संतोष की सांस ली। दोनों एक दूसरे से लिपट कर रोने लगे‌ थोड़ा ठीक लगने पर…. दोनों बाहर आ गये।
अपुन को माफ करना रघु तू अपुन की वजह से फिलम नहीं देख सका। पता नहीं कैसे चक्कर आने लगा ….! नंदू अफसोस जनक शब्दों में बोला। नई रे फिलम तेरे से जास्ति थोड़े है बाद में देख लेंगे तू ठीक है ना …? पर तू अइसे – कइसे बेहोश हुआ रे ….वो सुबो से अपुन कुछ खाया नहीं था तो चक्कर आया होइंगा …!काइको नहीं खाया पन तूने …..? वो घर में कुछ पका नई था और बाहर कुछ खाता तो टिकट में कमती हो जाता इसी लिए …..! तू एड़ा है क्या रे … रघु प्यार से नन्दू का हाथ पकड़ कर बोला ।मैं भी तेरे को एक बात बोलना मांगता मैं भी सारी …. मेरे कू भी माफ कर दे तू । काईकू… नंदू ने आश्चर्य से रघु को देखकर बोला …..
अपुन से मिस्टेक होएला दोस्त ,अपुन तेरे कू गलत समझा
तू नहीं आया तो सोचा की तूने अपुन से धोका किएला है। गुस्से में तेरे को मारने कू भी सोचा…. भरे गले से रघु आगे कुछ कह नहीं पाया। नन्दू ने उसे खींच कर गले लगा लिया । अइसा नई सोचने का चल अभी के अभी हस दे और दोनों मुस्करा दिए ।सारे गिले-शिकवे न जाने कहां गुम हो गए । और पुनः वहीं “आधी फिल्म “का सिलसिला निरंतर शुरू हो गया।

Language: Hindi
1 Like · 2 Comments · 453 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
#लघुकथा
#लघुकथा
*प्रणय प्रभात*
Thought
Thought
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
* आस्था *
* आस्था *
DR ARUN KUMAR SHASTRI
23/214. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/214. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
क्या कहूँ ?
क्या कहूँ ?
Niharika Verma
तकलीफ ना होगी मरने मे
तकलीफ ना होगी मरने मे
Anil chobisa
तेरी हुसन ए कशिश  हमें जीने नहीं देती ,
तेरी हुसन ए कशिश हमें जीने नहीं देती ,
Umender kumar
ग़ज़ल
ग़ज़ल
Neelofar Khan
किसी ने कहा- आरे वहां क्या बात है! लड़की हो तो ऐसी, दिल जीत
किसी ने कहा- आरे वहां क्या बात है! लड़की हो तो ऐसी, दिल जीत
जय लगन कुमार हैप्पी
वो आये और देख कर जाने लगे
वो आये और देख कर जाने लगे
Surinder blackpen
"आवारा-मिजाजी"
Dr. Kishan tandon kranti
शासन अपनी दुर्बलताएँ सदा छिपाता।
शासन अपनी दुर्बलताएँ सदा छिपाता।
महेश चन्द्र त्रिपाठी
*स्मृति: शिशुपाल मधुकर जी*
*स्मृति: शिशुपाल मधुकर जी*
Ravi Prakash
नदी की तीव्र धारा है चले आओ चले आओ।
नदी की तीव्र धारा है चले आओ चले आओ।
सत्यम प्रकाश 'ऋतुपर्ण'
Ranjeet Shukla
Ranjeet Shukla
Ranjeet Kumar Shukla
*तुम और  मै धूप - छाँव  जैसे*
*तुम और मै धूप - छाँव जैसे*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
हजारों के बीच भी हम तन्हा हो जाते हैं,
हजारों के बीच भी हम तन्हा हो जाते हैं,
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
मेरा गांव
मेरा गांव
अनिल "आदर्श"
मानवीय संवेदना बनी रहे
मानवीय संवेदना बनी रहे
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
जब  भी  तू  मेरे  दरमियाँ  आती  है
जब भी तू मेरे दरमियाँ आती है
Bhupendra Rawat
बचपन में लिखते थे तो शब्द नहीं
बचपन में लिखते थे तो शब्द नहीं
VINOD CHAUHAN
****तन्हाई मार गई****
****तन्हाई मार गई****
Kavita Chouhan
यूॅं बचा कर रख लिया है,
यूॅं बचा कर रख लिया है,
Rashmi Sanjay
प्यार का पंचनामा
प्यार का पंचनामा
Dr Parveen Thakur
ग्वालियर की बात
ग्वालियर की बात
पूर्वार्थ
मस्ती का माहौल है,
मस्ती का माहौल है,
sushil sarna
सत्य संकल्प
सत्य संकल्प
Shaily
.......
.......
शेखर सिंह
कोई कैसे ही कह दे की आजा़द हूं मैं,
कोई कैसे ही कह दे की आजा़द हूं मैं,
manjula chauhan
संकल्प
संकल्प
Naushaba Suriya
Loading...