आधी फिल्म पुरा मजा
*************** ( आधी फिल्म पुरा मज़ा )**********
मेमसाब …. अपुन चोर नहीं है मेमसाब….! अपुन ने चोरी नहीं किया मेम साहब….!!अपुन चोर नहीं है मेमसाब…..आ…पु…न……चोर…. नहीं है…. मेमसाब..!
क्या मस्त एक्टिंग कियेला अमिताभ …!!! रघु ने नन्दू से पुछा….नन्दू ये सबी हीरो लोग सच में रोता क्या…? नई ये ये सब आंख में कुछ डालता है जिससे आंसू निकलता है नन्दू ने कुछ इस तरह बताया जैसे वो एक्सपर्ट हो।और लास्ट में अमजद को भी भोत मारा क्या फाइट किया मजा आ गया…और वो गाना भी मस्त था….तेरे बिना भी क्या जीना…… ! पर पहिले का स्टोरी तू तो बता फिर मैं तेरे को पुरा स्टोरी बताएगा… रघु बोला।और नन्दू शुरू हो गया…ये गाना भी अमिताभ मस्त गाएला है .. मुकद्दर का सिकंदर कहलाएगा…. नई रे अमिताभ नई गाएला ये गाना ये लोग खाली पीली होंठ हिलाता है और गाना दूसरा लोग गाता है… इसी तरह दोनों मजा लेते हुए कहानी का पोस्टमार्टम करते हुए घर की ओर चल पड़े ।
नंदू और रघु दोनों की उम्र करीब 14,15साल होगी दोनों ही एक दूसरे के पड़ोस में रहते थे बचपन से दोनों साथ पले बढ़े होने की वजह से दोनों में अच्छी दोस्ती थी ,याने की लंगोटिया यार ही थे। दोनों ही फिल्मों के काफी शौकिन थे । फिल्मों का शौक उन्हें और भी करिब ले आया था मगर प्राब्लम ये था कि एक फिल्म की टिकट के पैसे जमा करने के लिए 20,25दिन और कभी- कभी एक माह से भी ज्यादा इंतजार करना पड़ता था ।इस वजह से बहुत सी फिल्में देख नहीं पाते थे ।दोनों में से एक फिल्म देख कर आता और दूसरे को स्टोरी सुना देता पर देखने और सुनने में काफी फर्क होता है इसी तरह चल रहा था की नन्दू बोला ….रघु एक काम करते हैं आधी फिलम तू देख आना फिर आधी मैं देख आऊंगा और दोनों एक दूसरे को आगे पीछे की स्टोरी बता देंगे क्या बोलता…? एक के खर्च में दो फिल्म..दोनों ही खुशी से उछल पड़े और तब से ये सिलसिला निरंतर चलने लगा। आज भी मुकद्दर का सिकंदर फिल्म देखकर निकले और खुशी से चहकते हुए घर आ गये।
रघु जल्दी चल ना रे ….फिलम चालू हो जाएंगी.. नंदू ने आवाज लगाई…! हौ रे आता हूं …..रघु आवाज के साथ ही भागता हुआ आ गया और दोनों सिनेमा हाल की तरफ चल पड़े। सिनेमा हाल पहूंच कर दोनों ने अपने-अपने पैसे मिलाए और एक टिकट खरीद लाए । नंदू जा पईले तू देख कर आजा फिर अपुन जाएगा …रघु बोला तो नन्दू पहले फिल्म देखने चला गया और रघु बाहर बैठ कर मध्यांतर होने का इंतज़ार करने लगा। मध्यांतर होने की बेल बजी, मध्यांतर हुआ तो पब्लिक बाहर आने लगी रघु नन्दू के आने का बेसब्री से इंतजार करने लगा । पर बहुत देर बाद भी नन्दू आता न दिखा तो रघु की बेचैनी बढ़ने लगी सभी लोग अंदर चले गए फिल्म भी पुनः शुरू हो गई । रघु इंतजार करता रह गया, मगर नन्दू बाहर नहीं आया। रघु की आंखों से आंसू छलकने को मचलने लगे और कुछ ही देर में बांध टूट गया और आंखें छलक ही आई ।
फिल्म न देख पाने की कसक गुस्से में परिवर्तित होने लगी पल-पल क्रोध अपनी चरम सीमा की ओर अग्रसर होने लगा । नंदू इतना धोखेबाज निकलेगा ,और पुरी फिल्म खुद ही देखकर उसे इस तरह धोखा देगा कभी सपने में भी सोचा न था। मध्यांतर के पश्चात गेट पुनः बंद हो गया। अब फिल्म खत्म होने तक इंतजार करने के अलावा कोई चारा न था ।उसे अपने बचपन के दोस्त से ये उम्मीद तो बिल्कुल भी नहीं थी वो इस तरह धोखा देगा । आने दो ….अपुन आज छोडेगाइच नई उसको…. मन ही मन कनमुनाते हुए फिल्म छुटने का इंतज़ार करने लगा। उसके तेवर बता रहे थे की नन्दू के आते ही उस पर टूट पड़ेगा।
इंतजार लम्बा लगने लगा….. एक एक मिनट जैसे बहुत भारी था। निश्चित समय पर फिल्म खत्म हुई…. और लोग बाहर आने लगे …. रघु ने पास ही पड़ी लकड़ी उठा ली और नन्दू के आने का इंतजार करने लगा । मगर ये क्या ….सारी पब्लिक चली गई ….पर नन्दू आता नजर ना आया ….! धीरे-धीरे क्रोध पर घबराहट हावी होने लगी । गेट पुनः बंद होता उसके पहले वो अंदर की ओर भागा … अंदर जाकर देखा तो हाल भी खाली हो चूका था ।अब तो रघु बुरी तरह घबरा गया। क्या करे क्या न करें कुछ समझ नहीं आया ।नन्दू कहां चला गया ..?क्या हुआ उसे ….?? गया किधर से….???मैं तो बाहर ही बैठा था …! अपने आप के प्रश्नों में उलझ कर रह गया। तभी गेट कीपर ने पुछा … क्या रे फिल्म खत्म हो गई घर नहीं जाना क्या ? मेरा दोस्त अंदर फिलम देखने कू आएला था पर बाहर नहीं आया उसको इच देख रेला अपुन….लगा जैसे फिर रो पड़ेगा रघु ।
तेरे बराबर का ही है क्या वो….अरे थोड़ी देर पहले एक लड़के को मेनेजर के आफिस में ले के गए … वहां जा कर देख….बोलकर वो अपने काम में जूट गया। रघु लगभग भागते हुए मेनेजर आफिस की ओर चल पड़ा। वहां पहुंचते ही जो देखा …तो उसके होश ही उड़ गए । नंदू बेंच पर बेहोश पड़ा था। क्या हुआ इसे….. नंदू उठ…..रघु ने अंदर पहुंच कर पुछा। तुम कौन हो …इसके साथ हो क्या….. मेनेजर ने बताया … फिल्म देखते देखते बेहोश होकर गिर पड़ा तो इसे यहां लेकर आए डा. को फोन किया है वो भी आता ही होगा।डा.ने आकर देखा और दवा दी तो थोड़ी देर में नन्दू को होश आ गया । नई जगह देख नन्दू हड़बड़ाया पर रघु को पास खड़े देख संतोष की सांस ली। दोनों एक दूसरे से लिपट कर रोने लगे थोड़ा ठीक लगने पर…. दोनों बाहर आ गये।
अपुन को माफ करना रघु तू अपुन की वजह से फिलम नहीं देख सका। पता नहीं कैसे चक्कर आने लगा ….! नंदू अफसोस जनक शब्दों में बोला। नई रे फिलम तेरे से जास्ति थोड़े है बाद में देख लेंगे तू ठीक है ना …? पर तू अइसे – कइसे बेहोश हुआ रे ….वो सुबो से अपुन कुछ खाया नहीं था तो चक्कर आया होइंगा …!काइको नहीं खाया पन तूने …..? वो घर में कुछ पका नई था और बाहर कुछ खाता तो टिकट में कमती हो जाता इसी लिए …..! तू एड़ा है क्या रे … रघु प्यार से नन्दू का हाथ पकड़ कर बोला ।मैं भी तेरे को एक बात बोलना मांगता मैं भी सारी …. मेरे कू भी माफ कर दे तू । काईकू… नंदू ने आश्चर्य से रघु को देखकर बोला …..
अपुन से मिस्टेक होएला दोस्त ,अपुन तेरे कू गलत समझा
तू नहीं आया तो सोचा की तूने अपुन से धोका किएला है। गुस्से में तेरे को मारने कू भी सोचा…. भरे गले से रघु आगे कुछ कह नहीं पाया। नन्दू ने उसे खींच कर गले लगा लिया । अइसा नई सोचने का चल अभी के अभी हस दे और दोनों मुस्करा दिए ।सारे गिले-शिकवे न जाने कहां गुम हो गए । और पुनः वहीं “आधी फिल्म “का सिलसिला निरंतर शुरू हो गया।